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वचमें पड्यो वैताढ्य रजतनो, जोयल पचासनो जोय ॥ सो० ॥ ए ॥ ना० ॥ पटखंरुमें खंरु तिन तिन तेणें करया, दक्षिण उत्तर श्रेणि ॥ सो० ॥ सो ल सोल सहस ए जनपद में रहे, वसती अनार्य नी तेा ॥ सो० ॥ १० ॥ जा० ॥ साढा पचवीश धारय प्रति नला, केकै अर्ध समेत ॥ सो० ॥ श्रीजि नधर्मनो वास तिहां जहे, सहस बत्रीश मध्य एत ॥ ॥ सो० ॥ ११॥ ना० ॥ ते माटे इहां धारय देशमां, कनकपुरी निधान ॥ सो० ॥ साव सोनामय सुंदर शोजती, अमरपुरी उपमान ॥ सो० ॥ १२ ॥ जा० ॥ नलिनीगुल्म विमान तणी परें, एकविश भूमि श्रा वास ॥ सो० ॥ रतन जटितमें गोरख विराजता, कर ता तेज प्रकाश ॥ सो० ॥ १३ ॥ जा० ॥ कुंतीया व परें हटश्रेणि राजती, बाजती विजयनी पंक्ति ॥ सो० ॥ देश देशांतर विराज करे बहु, वरसे वसु धारा शक्ति || सो० ॥ १४ ॥ ना० ॥ धनवंत धनद जंमारी सारिखा, बसे तिहां नगरीमां लोक ॥ सो०॥ पंच विषयना रसमेंलीया रहे, जोगी चातुर लोक ॥ ॥ सो० ॥ १५ ॥ जा० ॥ षट दरशनना पोषक जन बहु, पाले निज निज धर्म ॥ सो० ॥ घर घर शत्र
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