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(५) कार करे घणा, लेहवा शिव सुख हर्म ॥सो॥१६॥ ॥ना॥ जिनशासनना- देवल दीपतां, बत्रीश थडा प्रासाद ॥ सो॥ चोराशी मंम्प अति चोपगुं, कर ता स्वरगा वाद ॥ सो० ॥ १७ ॥ ना०॥ दंमधजा अतिपवनें फरहरे, नाचे माचे मनरंग ॥ सो ॥ध न्य दिवस मुज जिन शिर ढुं चढी,पावन करवा मुफ अंग ॥ सो० ॥१७॥ना ॥ श्रीजिन केरी जगति करे सदा, नविक जीव अपार ॥ सो ॥ तीर्थकर पद ते उपराजता, रावनी परें सार ॥ सो॥१॥ना॥ वरण अढार वसे तिण नगरीयें, जाणियें सुर अव तार ॥ सो० ॥ गढ मढ मंदिर पोलि शोना घणी, नू रमणी तरहार ॥ पानंतर॥नगर कनकपुरनामें शोन तुं, स्वर्गपुरी अनुहार ॥ सो॥२॥जा॥ नंदनवन सम परिमल वाटिका, चिटुंदिशि नगरीनी पास ॥ ॥ सो॥ वापी कूप सरोवर जल नयां,खटकतु फलें सुखास ॥ सो॥ २१ ॥ ना०॥ काल उकाल ते को नवि उलखे, अहोनिश सुखनी ने वात ॥सो॥ इति नपश्व सुपनें नवि जाणे, पुहवीयें प्रगटीए ख्यात ॥ सो० ॥ २२॥ ना० ॥ कनकपुरीना ए गुण सां नली, लाजी संका तिवार ॥ सो ॥ जलनिधिमां
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