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जइबूडी बापडी, जाणे सकल संसार ॥ सो॥ ॥ २३ ॥ जाण ॥ स्वर्गपुरी पण ननमा जइ रही, नि सुपी तेहना अवाज ॥ सो० ॥ एह नगरी कनक पुरी तणी, दिन दिन चढती लाज ॥ सो॥ २४ ॥ ॥ना०॥ कनक पुरीनां रे वयण वखाणतां, पनणी पहेली ए ढाल ॥ सो ॥लब्धिविजय कहे नवियण सांनलो, आगल वात रसाल ॥ सो० ॥श्याना॥
॥दोहा॥ ॥तिण नगरीयें राजवी,वसंतसेन नूपाल ॥ न्यायि निपुण वसुदेव ज्यु, करुणावंत कपाल ॥१॥ वाक्य वबल हरिचंद जिस्यो,नुजबलि नीमसमान ॥ अरिय
सघला वश करी, कृतास्यां तस मान ॥ ३ ॥ पर जाने पाले सदा, करे हथेली बांह ॥ दाण जगात दिसे नही, करदंम बंधन क्यांह ॥३॥ करदम मुनि देनल शिरें, बंधन स्त्रीशिरकेश ॥ वसंतसेन नृप णि परें, पाले राज्य विशेष ॥४॥ तस पटराणी पद मिनी, रूपें रंन समान ॥ शील सुरंगी गुनमती. व संतसेना अनिधान ॥ ५॥ मालती मधुकरनी परें, प्रीतडी जिम जल मीन ॥ तिम नृपराणी एकमना, रंगें रहे लय लीन ॥६॥ दोगुंउक सुरनी परें, पंचविषय
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