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अथ
पंमित लब्धिविजय विरचित श्री हरिबलमचीनो रास प्रारंभः
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॥ दोहा ॥
॥ प्रथम धराधव जगधणी, प्रथम श्रमण पण एह ॥ प्रथम तीर्थंकर जग जयो, प्रथम गुरू पनणेह ॥ १ ॥ विश्व स्थिति कारक प्रथम, कारक विश्व उद्योत ॥ धा रक अतिशय व्यादि जिन, तारक नवनिधि पोत ॥ २ ॥ लघुवय वा इकुनी, पारण दिन पण तेह ॥ मिष्ट इष्ट जेहने सदा, नानिनंदन प्रणमेह ॥ ३ ॥ सिद्धव धूना संगमें, बक बक्यो दिन रात ॥ हुं तस पदपंक ज नमुं, नित्य नठी परजात ॥ ४ ॥ हंसासन जे स रसती, वरसति वचन विलास ॥ कविजन केरा हृद यमें, करती बुद्धि प्रकाश ॥ ५ ॥ ते हुं प्रणमुं नारती, वारति जड अंधार ॥ मुऊ मन मंदिरमें वसी, करवा मुऊ उपगार ॥ ६ ॥ माता मुऊ महोटो करी, देजे व चन रसाल ॥ रंगरंगीली जनसना, सांजले थइ नज
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