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(ए ) श्म अनेक ते जातिनी रे, वणसरगनार अंढार ॥ जोगी जनने कारणे रे, प्रगट थई संसार रे॥ २६ ॥ प्रणा वापी कूप सरोवरु रे, नरियां अमृततोय ॥ हंस चकोर ने सारसा रे, जलक्रीडा करे सोय रे ॥ २७॥ प्र॥ श्म हरिबल जोतो वहेरे,संकावन सुरसालाल ब्धि बीजा उन्नासनी रे,पनणी ग्यारमी ढाल रे॥२॥
॥दोहा॥ ॥ लंकापरिसर वाटिका, सोहे अति रमणीक ।। जाणे नंदनवन तणी, नगिनी प्रगटि नजीक ॥ १ ॥ कनक रयणमें जलकता, महोटा मेहेल अत्यंत ॥ खंमोखली जलयुंजरी, कारिंऊ तिम नबलंत ॥२॥ नर नारी विद्याधरी, किन्नर अप्सर बाल ॥ सरखे स्वरें टोलें मली,गावे गीत रसाल ॥ ३॥ मधुरी ध्वनि आ राममें,थइरह गमो ताम॥हारबल ते श्रवणे सुर्णी, मगन थयो अनिराम ॥॥ मानव जव जलें में लह्यो, नलें लह्यो गुरु उपदेश ॥ सागरदेव पसायथी, लंका दीति विशेष ॥५॥ वन उपवन जोतो थको, हरिबल हर्ष कलोल ॥ श्राव्यो यतिही चूंपयुं, लंकागढनी पोल ॥ ६ ॥ साव सोवनमय उर्ग ते, उपे मणिमय शीर्ष ॥ जाणे नूरमणी करे, उपे कंकण नीर्ष ॥ ७ ॥
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