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(ए) एहवो वप्र विराजतो, नगरी राखण चंग ॥ जाणे जंबु दीपनो, जगती कोट उत्तंग ॥ ॥ इणिपरें गिनो ऊर्ग ते, निरखी हरखित होय ॥ पेसारो पुरमें करे, गुन लगनें करि जोय ॥.ए॥
॥ ढाल बारमी॥ ॥ढणीनी देशी ॥ सासु काठा हे गहुँ पीसाय, या न जाशो हेमाल ते सोय नारी नणे॥ए देशी॥ पेठो इिंगतणी वर पोले, निरखे रे हाट मंदिर बहु ॥ सदु कोय सुणो॥ जाणे दक्षिण उत्तर उत्त, नुवनपति मंदिर सदु ॥१॥स०॥ ए तो साव सोवनमय धन, कनक रयणमें मालीयां ॥ स ॥ तेजें काफळमाल, अचंन दीसे मोतिनां जालियां ॥ २ ॥स ॥ जाणे ननथी दिनकर सार, आवी घर घर प्रगटीया ॥स ॥ नवि दीसे तिमिर लगार,उद्योत सघले उलटीया॥३॥ स० ॥ एतो कोरणी धोरणी जोर, जाणे देवपुरी वसी स॥ सोहे राय बिनीषण ठोर, राज करे मन उनसी ॥ास॥ वसे वसती वरण अढार, रास रूपें मानवी ॥सण॥ एतो न गणे नह अनद, एवी लंका जाणवी ॥ ५ ॥ स ॥ घोडा गज रथ ने सुख पाल, राज्य मारगमें वहे घणा ॥स०॥ देखे महोटा
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