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________________ (१३५) तिणें पण पुण्यना योगथी, जन्म्यो पुत्र रतन्न ॥ ७ ॥ इणिपरें लीला जोगवे, हरिबल पुण्य विख्यात ॥ सं सारिक जे सुख कह्यां, विजसे ते सुख सात ॥ ८ ॥ तन धन स्त्री सुत सस्यनी, अंबर रस ए सात ॥ जेहने घरें पुष्यवेल बे, तेहने ए सुख शात ॥ ॥ इणि परें काल ते नीगम्यो, वर्ष सहस पचवीश ॥ नृप राणी सरखे मनें, पाले धर्म जगीश ॥ १० ॥ जैन दरीसनमें थइ, नृपनी जगती कहाय ॥ तिहां सूधी कृषि विचरता, पुहवि पवित्र कराय ॥ ११ ॥ देव गु रुने वांदिने, सांजलि गुरु उपदेश ॥ त्यार पढें ते के लवे, घरनां काज विशेष ॥ १२ ॥ इलिपरें हर्ष विनो दमें, श्री जिनधर्म दीपाय || ति समे विशमा जिन तणा, धाव्या मुनिजन राय ॥ १३ ॥ पंचसया परवस्था, गणधर सुस्थित नाम ॥ वीशाला पुर परि सरें, उतरखा निरखी गम ॥ १४ ॥ साधु वधामणी मालीयें, नृपने दीधी ताम ॥ नृप पण निसुली मालीने, देवे महर्द्धिक गाम ॥ १५ ॥ . ॥ ढाल चनदमी ॥ ॥ सुडला संदेशो कहेजे महारा पूज्यने रे । अथवा ॥ जीव जीवन प्रभु किहां गया रे ॥ ए देशी ॥ वात वधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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