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(पू.)
शशक मसक दो जाइ तेहनी बहेन कहाणी हो राज ॥ चिरकाल सुधी ते साधवी, सारथवाहनी घरणी थइ रही उपगार जाणी दो राज ॥ ११ ॥ ते थार्या कुशीनणी, असा खंमी पहोती ते हिज नव सुरलोकें हो राज || तेहना परगट अक्षरा, श्री उपदेशनी मालामांदे वांची जोकें हो राज ॥ १२ ॥ ब्रह्मा ध्यानें चुकव्या, नाटारंज देखाडी रंगायें जो लव्यो ब्रह्मा हो राज || चिहुंदिशि चनमुख नी पनां, गर्दननुं मुख प्रगटधुं पांचमुं उपजे शर्मा हो राज ॥ १३ ॥ मारग जातां ब्रह्मायें, वनमें दीवी रीं बडी मीठी मनमें लागी हो राज || तेहयुं अनिताष सेवता, ऋषि तें बडी पेटें उपनो सागी हो राज ॥ १४ ॥ ब्रह्मपुराणें ते ब्रह्माने, परमेसर करि माने डुनियां एक ध्यानें हो राज || तारक जग परमेसरु, निज पुत्री विलसे रंगें थइ एक तानें हो राज ॥ १५ ॥ उमया नारी नवेखीनें, जटामध्यें बानी राखी ईश्वरें गंगा हो राज || तारक जाणी शंत्रुने, वरण अढार जे मानविरुड्ने पूजे एकंगा हो राज ॥ १६ ॥ पुत्री लेखा देखीने, त्रिनेत्री थयो शंकर तिएा दिनथी गव रायो हो राज || लिंगपूजा या तिल दिनथी, लिंग
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