________________
(२३३) स ॥ जो जो नवियां साधुनी संगते, लह्यो जीवद यानो धर्म ॥ स ॥ थयो परसन जलनिधि देवता, तिणे वधायो महीनो नर्म ॥२६॥स॥ थयो चावो ते चिढं खूटमें, जोगवे शुन दि समृ६ ॥ स ॥ जाणे सुरपतिनो समोवडी, थइ बेठो मही प्रतिम ॥ २७ ॥ सा जलें प्रगव्या सद्गुरु जगतमें, उपगा री परम कृपाल ॥ स ॥ कहि चोथा ननासन। बा रमी, लब्धे संयोगनी ढाल ॥ २७ ॥ स० ॥
॥दोहा॥ ॥ एहवा सशुरु वयणथी, पाम्यो जिनवर धर्म ॥ थयो परसन जल देवता, वधियो मढी नर्म ॥१॥ हरिबल दो पदवी लह्यो, सागरदेव पसाय ॥ उकुरा
बत्रीश लाखनी, पायकें अश्व सुहाय ॥२॥ गुंढा दम विराजता, दिसता जाणे पहाड ॥ गजशालामें गज घटा, सोहे सहस अढार ॥३॥ सुख विलसे संसारनां, शोलशे राणी सब ॥ पटराणी थापी व डी. वसंतसिरी सुकयब ॥४॥ मलगीजे परिणेतनी. काली कर्कशा नार ॥ ते पण हरिबलें संग्रही, करि अपर अवतार ॥ ५॥ अमारि पलावे चिहुँ दिशे, जिहां सूधी आण ॥ तिहां सूधी को जीवनां, का
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org