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( १३१ )
ली मीठी अमृत वाण ॥ स० ॥ स्वामी पधारो गज शिर चढी, पुर पावन करो प्रमाण ॥ १८ ॥ स० ॥ शेठ सेनापति सारथ मलि, करे विनती हर्ष विख्या त ॥ स० ॥ तव हरिबल हर्ष विनोदथी, गजशिर च ढया ससरो जमात ॥ १५ ॥ स० ॥ यामां साहामां वाजित्र वाजते, गावे गुणिजन शब्द खंम ॥ स० ॥ होवे नाटक बत्रीश ब६ जे, तेणें गाजी रधुं ब्रह्मम ॥ २० ॥ स० ॥ कस्यो उष्ठव विवाह जेटलो, कुमरी नी वधारवा लाज ॥ स० ॥ नृपें करमूकामों म बीने, दीधुं कंचनपुरनुं राज ॥ २१ ॥ स० ॥ मणि सोवन रूपुं सावटुं, गुणिजनने कीध पसाय ॥ स०॥ करि पृथ्वी उरण दानमें, याश्रीजन बहु तृपति कराय ॥ २२ ॥ स० ॥ जलां नेटणां लावे पुरजना, वर क न्याने करे नेट ॥ स० ॥ मन वंबित सुखनिधि नल टीयो, तेणें नारख्यां दुःखने उबेट ॥ २३ ॥ स०॥ निवास नी जायगा मोटकी, रहेवाने दीधीजी खास ॥ स० ॥ रंग महोलमें वास्यो कुमरीने, दीधो एकविरा भूमि यावास ॥ २४ ॥ स० ॥ जसपडहो वजाड्यो नयर मां, वरतावी महीनी खाए ॥ स० ॥ वीरबल केरो हरिबल पुत्रो, ठव्यो राज्ये लिखित प्रमाण ॥ २५॥
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