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________________ (304) खशाता थइ मुक्त ॥ १७ ॥ सांचलो पंथी जीवन मा हरा ॥ ए यांकणी ॥ कुसुमसिरी कहे सांजलो, पंथी क रुणा कृपाल ॥ नाग्य बली में तुम्ह उलख्या, साहसिक महोटा मयाल ॥ १८ ॥ सां० ॥ सघनी वातें पूरा जा एलीने, में तुम्ह काव्यो जी हाथ ॥ दुःखनिधि पार न तारवा, नलें याव्या तुम्हें नाथ ॥ १९ ॥ सां० ॥ मन ललचाएं तुम देखतां, जिम मन केतकी चंग ॥ बेकर जोडीने वीनवुं, मुऊने परणो सुरंग ॥२०॥ सां० ॥ सूरज चंद साखें करी, परणी पूरो जी लाड ॥ नि ज नारीने सुख देयतां, शोते चढावुं जी पाड ॥ २१ ॥ सां० || माहरे वखतें तुम्हें याणीया, ताली पुण्य विशेष ॥ ते हुं टाली ते किम दलुं, लखीया पानें जे लेख ॥ २२ ॥ सां० ॥ इलि परें वयण वेधालुयें, कु मरीये नाख्यां जे बा ॥ वेधक बाणें ते वेधियो, हरि बल चतुर सुजाण ॥ २३ ॥ सां० ॥ परस्यो तेह कु सुम सिरी, हरिबल पाम्यो ते चेन ॥ जाणे परस्यो बीजी अप्सरा, वसंत सिरीनी ते बेन ॥ २४ ॥ सां० ॥ लंका धणीने तेडवा, मी बीडं बबेय || गडदो ते गुण या वियो, लोक खाणो कहेय ॥ २५ ॥ सां० ॥ माली नीमो जोतो रह्यो, परस्यो पुत्रीने कोय ॥ नुतयां जो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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