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________________ (१०६) षी कोली जम्या,ए उखाणो ते होय ॥ २६ ॥ सां० ॥ सिंहनो नद ते जंबुकें,कहो ते केम कराय॥कलिंगमहो टुं कीडी मुखें, कहो ते कम समाय ॥ २७ ॥सां० ॥ हरिबल केरा जे नाग्यमें, कुसुम सिरी लखी जेह ॥मा लीने किम मोलवे, लख्या विधातायें लेह ॥ ॥ सा॥हरिबल पुण्यना जोगथी, पाम्यो मंगलमाल ॥ लब्धि बीजा उन्नासनी, पनणी तेरमी ढाल ॥ ५ ॥ ॥दोहा॥ ॥हवे कुमरी कहे कंतने,निसुणो प्राणाधार ॥ आ पण वहियें बे जणां, जिहां ले निज धागार ॥१॥ सांकें माली आवशे, आखें पडशे खूण ॥ आपण बे दुने दूवशे, तो ते राखशे कूण ॥॥ तव हरिबल क हे नारिने, सांजल प्यारी मुज ॥ लंकापतिने तेडवा, आव्यो बुं कहूँ तुज ॥ ३ ॥ विशाला पुरनो धणी,मद नवेग ते नाम ॥ अंगजने परणाववा,मेले नृप अनि राम ॥४॥ वैशाखे सितपंचमी, लीधां लगनज जेह॥ सघला देशना राजवी, तिण दिन मिलशे तेह॥५॥ तव वीशालानो धणी,बोल्यो सना समद ॥ को ले लं का रायने, तेडी आवे विचद ॥ ६॥ तव तिहां को इन बोलियो, बीडुं न बबे कोय ॥ तव तुज नाग्यब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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