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राखे घरनां सूत्र जा० ॥ ८ ॥ सु० ॥ एकने पुत्र विना सही, सूनां तस यागार जा० ॥ प्रेत मंदिर सम जालीयें, पुत्र विना घरबार ला ०॥ ए ॥ सुं० ॥ पुत्र विना गति को नही, पुत्र विना नही स्वर्ग जा०॥ लौकि क मतना शास्त्र में, जापे ऋषिजन वर्ग ला० ॥ १० ॥ सुं ॥
उक्तंच ॥ गाथा ॥ गेहं तंपि मसाणे, जब न दीसंति धूलि धूसर वाया ॥ उवंत पडंत रडंत, दो तिनि मिंना नदीसंति ॥ १ ॥
॥ श्लोक ॥ पुत्रस्य गतिर्नास्ति, स्वर्गोनैवच नैवच ॥त स्मात्पुत्रमुखं दृष्ट्वा, पश्चात् धर्म समाचरेत् ॥ ॥ पूर्व ढाल ॥
॥ होनिश इम चिंता करे, वसंतसेन नूपाल जा० ॥ तिए अवसर एक ज्योतिषी, यावी मव्यो ततकालला ० ॥ ११ ॥ सु० ॥ श्रागम नीगमनी कहे, शास्त्र तणे य नुसार जा० ॥ एहवो पंमित देखीने, नरपति हर ख्यो अपार जा० ॥ १२ ॥ उठीने प्रणीपत करें, नाव धरी मनमांहि ला० ॥ मुझ सहित फल फू ल, पुस्तक पूजे वाहिला० ॥ १३ ॥ सु० ॥ वे कर जोडी वीनवे, कीजें करुणा कृपाल जा० ॥ प्रश्न जुवो प्रभु माहरे, होशे बाल गोपाल जा० ॥ १४ ॥
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