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(१३०) बोल्यो पंथी सार ॥ राय बिनीषण केलं होने शर| जलेलं मुफ कयुं, ए तो नाणेज बोल्यो विचार । ॥ हवे ॥३॥ तुम दरिसणनो अर्थी हो करि कर थी बारनी पोटकी, मुफ बांधी दीधी एह ॥ कहे रा खस तुम सयणे हो तुम नयणे मूकि ए पोटकी, ए तो नेट करी में तेह ॥ हवे॥४॥ श्म राखस गयो कहिने दो ए तो वहीने फरी निज थानकें, तव चिंतवे बिनीषण चित्त ॥ विस्मय पाम्यो मनमें दो राय जनमें बोडी जाणके, ए तो राखसनी पोटकी दीत ॥ ५॥ .एम हरिबल कहे नृपने हो घणे यत्ने जस्म करें ग्रही, मुफ बांटे अमृत तोय ॥ ए
आंकणी॥ विद्याबलें करी शुको हो मुफ कीधो जी वतो देखता, तिणे दीधी फरि अवतार ॥ सनमान्यो मुने स्वामी हो घणुं अंतरजामी पेखतां, मुफ कीधो बहु उपगार ॥ ए. ॥ ६ ॥ लंकापति मुज. पूढे हो ए शुं तें काया दही, मुफ मामी कहो विरतांत ॥ तव में लंकापतिने हो कहि यतने मामीने सही,एतो आपणा घरनी वात ॥ ए॥ ७॥ वीशालापुर नग री हो दे सघरी सघसा देशमें, ए तो महोटी पुण्य पवित्र ॥ मदनवेग त्यां राया हो सुखदाया सघला
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