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________________ ( १३१ ) नरेशमें, ए तो सोहे प्रजामें बत्र ॥ एवं ॥ ८ ॥ अंग जने परणावा हो जस पावा चिहुं दिशिमें प्रभु, एतो मांमधो व रंग ॥ तिय कारण नृप मेजे हो मन जेले सघलाएं विभु, एतो तेडी ते खमंग ॥ ए० ॥ ॥ ए ॥ तेणें तुम यामंत्रवा हो ए तो मंत्रवा हर्ष हि ये धरी, तिणे तेडवा मूक्यो मुऊ ॥ ते माटे तुमें वे ला हो ए तो लगननी पहेला परवरी, तुमें यावोज्युं पडे सूऊ ॥ ० ॥ १०॥ तव लंकापति बोल्यो हो मन खोली कहे मुफ यागलें, तुं सांजल पंथी सुजाए ॥ में किम तिहां अवराय हो न जवराये निज नागलें, तो किम थाय प्रयाण ॥ ए० ॥ ११ ॥ तें माटे तुमें कहेंजो दो मुफ मुजरो लेजो दिन प्रतें, तिहां बेठा विशाला मऊ ॥ खड्गनी या सहनाएणी हो गुण खाली मूकी तुम प्रतें, ए तो सघले कामें सकऊ ॥ ॥ ० ॥ १२ ॥ एम कहिने बिभीषणें हो मुने नूष ए देइ जडावनां, वली पूत्री पण मुफ दीध ॥ तुम परसादें सांई हो प्रभु मुफ़ अंतर मां नावना, मुफ कीधी बिनीष वृद्ध ॥ ए० ॥ १३ ॥ घणे आमं बरें करीने हो जस वरीने मुफ वोलावियो, निज पुत्री सहित महाराज ॥ वनि निज सेवक साधें हो ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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