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________________ (३१) रिबल सुख जोगवे, एतो वसंतसिरीनी साथ रे ॥ सुरू ॥ मानवनव सफलो करे, एतो जाणे पामीाथ रे ॥ सु० ॥ ११॥ गु० ॥ एतो शत्रुकार मांझयो घणो, एतो देवे दान उदाह रे ॥ सु० ॥ बंदीजन बिरुदाव ली, ए तो हरिवलनी बोले अथाह रे ॥सु०॥१२॥ शु०॥ ताल कंसाल मृदंगना, एतो वाजे नाद अचंन रे ॥९॥ हरिबल वागल शोनता, एतो होवे नाटा रंन रे ॥१०॥ १३ ।। शु०॥ चाली पुरमें वातडी, ए तो हरिबलनी श्राख्यात रे॥सु ॥ मदनवेग नृप बागलें, एतो हरिबलनी थर वात रे ॥सु०॥१४॥ शु०॥ एतो त्रीवंशे राजवी, एतो वीरबल केरो धी र रे ॥ सु० ॥ नुजबली नीम समो वडी, एतो दाने विक्रम वीर रे॥सु॥१५॥गु०॥ याव्यो श्रापणा नय रमां,एतो परदेशी प्रादुणो जोर रे॥ सु०॥ वसंतश्री तस जारजा, एतो रूपें रंज चकोर रे ॥ सु० ॥१६॥ शु०॥ एहवीथ दरबारमां, एतो हरिबल केरी वा त रे ॥ सु॥ दत्री वंश शिरोमणी, एतो वीरबल के रो जात रे ॥ ९ ॥१७॥ गु०॥ मदनवेग नृप सां नली, एतो मनमें दुर्ग हेराण रे॥ सु० ॥ तो बोला बुं एहने, एतो जोवु ते अदिनाए रे ॥सु० ॥१७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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