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(१३) लापशी, गुंदवड गुंदपाक ॥ मो० ॥ मर्कि जलेबी हे समी, मेहेसु पतासां चाक ॥ मो० ॥ सा ॥ ११ ॥ ॥ हां ॥ व्यंजन केही जातिनां, खारां खाटां तिरक ॥मो० ॥ खडका ने ब्रडका घणा, हिंग वघाखा हविख ॥ मो० ॥ सा ॥ १२॥ हां ॥ मांदोमांहि ते एकमना, मांमे रसिया वाद ॥ मो० ॥ अवला सवला जूता, करे ते नोजन स्वाद ॥मो॥सा०॥ ॥१३॥ हां ॥ शूर सुजट रण खेतमें, ज्यु लडे कर ता चोट ॥ मो० ॥ तिम रसिया लडें नोजनें, कर मुखयुं करें दोट ॥ मो० ॥ सा॥१४॥ हां ॥ शाल दाल ने घृतसरा, चाली ज्युं नदीनीक। मो०॥ रसिया राजन जन जम्या, स्वादें करीने ठीक ॥मो॥ ॥सा ॥ १५॥ हां० ॥ सारनी नीपाइ रसवती, जे हमा कांश नवि सुख ॥ मो० ॥ नगरी जन सदुको जमी, काढी सघली नूख ॥ मो० ॥सा ॥ १६ ॥ ॥ हां० ॥ कपूर कस्तूरी वासिया, जला करे मुख
६ ॥मो ॥ पान सोपारी एलची, तंबोल दे मन शुभ ॥ मो० ॥ सा ॥ १७॥हा॥ पहेरामणी सद्भु ने करी, नर नारी विस्तार ॥ मो॥ मुज्ञनी करी द क्षिणा, वरताव्यो जयकार ॥ मो० ॥ सा ॥ १७ ॥
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