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________________ (१५) वन्न ॥ ७ ॥ हरिबल चित्त श्म चिंतवी, कर ग्रहियो जलजात ॥ कोटें उलखवा सही, कोडी बांधी सात ॥ ॥ ढाल चोथी॥ -- ॥ इमर आंबा आंबली रे ॥ए देश॥ हरिबल हवे आयो गयो रे, नहुँ ले जल ज्यांह ॥ उरनर नदरने का रणे रे, जाल नाखी जर त्यांह ॥ १ ॥ सूरिजन सां जलजो अवदात ॥ एतो रंग रसीली वात ॥ सू० ॥ फरी पालो ते जालमा रे, आव्यो चोथी वार ॥ कोटें कोडी देखी करी,मूक्यो म विचार ॥२॥ सूरि ॥ पांचमी बही सातमी रे, फरि फरि नाखे जाल ॥तेम तेम ते भावी रहे रे,जालमां मह मुबाल ॥३॥ सू० ॥तिम तिम ते मबलखी रे.मकी ये ततकाल ॥ हरिबल व्रत महेन्यु नही रे, गुरु उपदेश रसाल ॥ सू० ॥ ॥श्म करतां दिन निर्गम्यो रे, मेहेनत करतां तेह ॥ तोही पण दोन्यो नही रे,मन्ही हरिबल जेह ॥ ॥ ५॥ सू० ॥ महीनी परीक्षा लही रे, प्रगट थयो सुरराज ॥ सुर कहे हरिबल माग तुं रे, हुँ तूगे तुज आज ॥ ६ ॥ सू० ॥ सुर वाणी ते सांजली रे, हरि बल बोल्यो तिवार ॥ दालिइ सुःख दूरें करी रे, सम स्था करजो सार ॥ ७ ॥ सू० ॥ सांजलि धीवर सुर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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