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(२६ए) मीना मेवा रे ॥ २२॥ न ॥ जो त्रण काल पूजा करे, नवसागर पार उतारे रे ॥ हलुवा कर्मी सर्दहे, ते जावे मुगति उंवारें रे ॥ २३ ॥ ज० ॥ रावण ने मंदोदरी, करी अष्टापद ते नृत्तो रे ॥ ता थै तान न चूकियां, जिन पदवीनी लहेवातो रे ॥२४॥नम् ॥ श्रेणिकरायें वीरनी, करी हेममे जवनी पूजा रे ॥ पद्म नान तीर्थकरु, होशे आवति चोवीशी राजा रे ॥ ॥ २५॥ न०॥ कुमारपाल पूरव नवें, कोडी पांचनी फूल चढावे रे ॥ देश अढारनो अधिपति, थयो फूल अढारथी फावे रे ॥ २६ ॥ ॥ इणि परें प्रनुनीपू जायकी,ए तो सघलां संकट नाजे रे॥स्वर्ग मुगति सुख पामीयें, वली संसारिक सुख बाजे रे ॥ २७॥ज॥ ए अधिकार ते सांजली, सदुनां मन नावें नेदाणां रे ॥ जिन वंदन जिन नक्तिमां, तस आतम रंग रंगा णा रे ॥ २७ ॥ न ॥ गुरुनी शीख सोहामणी, मानी विप्रै सघली साची रे ॥ चोथा नन्नासनी वी शमी, कहि लब्धं शास्त्रे राची रे ॥ २ ॥ ॥
॥ दोहा ॥ ॥ कृषिनी शीख सोहामणी, सांजलि सघला वि प्र॥ जिन वंदन अर्चानणी, विज हिजणी थयां दि
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