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(२३५) दीरो वीरो महारो साहेबो,पनामारु घडी एक करहो फुकाय हो॥ ए देशी ॥ दवे हरिबल सुख जोगवें॥ पुण्य वंत ॥ पाले राज अखंम हो ॥ सागर देव पसायथी। पुण्यवंत ॥ थयो गुण मणिनो करम हो ॥१॥ सुगुण सनेही प्यारो, धर्मनो मोही शुन, अनुनव गेही सु ख सागर ॥पु०॥ हरिबल परजा पाल हो ॥ए यांक णी॥ आण मनावी चिहुं दिशें ॥ पु॥ षोडश देश विशेष हो ॥ षोडश देशनी अंगजा ॥पु॥ विलसे ज्यु सुख सुरेश हो ॥ २ ॥ सु०॥ गुण लिये जीव दया तणो ॥पु०॥ गुण ले गुरु उपदेश दो ॥ परतख देखी पारख्यु ॥ पु० ॥ हरख्यो मही नरेश हो ॥३॥सु॥ तो हवे महिमा धर्मनो ॥पु०॥ प्रगट करूं नजमाल हो ॥ मानव नव सफलो करी ॥ पुं०॥ मेली सुकत माल हो ।मासु॥ श्म जागी जल कांउडे ॥पु॥ जिहां लह्यो गुरु उपदेश दो॥ तिहां कणे चैत्य रची जलुंगपु॥राखं तिहां नाम विशेष हो ॥५॥सु॥षोड श देश सुहामणापुकीधा जिन प्रासाद हो॥ बिंब जराख्यां रयणमें ॥ पु ॥ बंमी सघलो प्रमाद हो ॥ ६ ॥ सु० ॥ अमारि पलावे आपथी॥ पु० ॥षोड श देश मजार हो ॥मार शब्द को नवि उच्चरे ॥पु०॥
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