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सघली परजा विचार हो॥७॥सु० ॥ नव जेदें जे पुण्य ॥ पु० ॥ गणांग सूत्र मकार हो ॥ तिण वि धे हरिबल केलवे ॥ पु० ॥ गुरुमुखी थश्ने विस्तार हो ॥ ॥ सु० ॥ जीव दया फल देखीने ॥ पु० ॥ सदुजन धर्म दीपाय हो ॥ लोक कहे जेहवा रा जवी ॥ पु०॥ एहवी परजा कहाय हो॥ए॥सु॥ इणि परें रंग विनोदमें ॥पुण॥ काढे सुखमें दीह हो। तिण समे मजीरायने ॥ पु० ॥ प्रेष्य याव्यो अबीह हो ॥ १० ॥ सु० ॥ विशाला नगरी तणो ॥ पु० ॥ आप्यो प्रेष्ये लेख हो ॥ श्रीपति मंत्री तुम तणो । ॥पुण॥ तेडवा मूक्यो विशेष हो ॥११॥सु॥ए अधि कार ते सांजली ॥ पु० ॥वांच्यो विशालालेख हो॥ सन्मानी ते प्रेष्यने । पु॥ दीधो उतारो अशेष हो। ॥१२॥ सु०॥ मतिसागर मंत्रीसरु ॥ पु०॥ मन्त्री यें तेज्यो सुजाण हो ॥ कनक पुरी रखवालवा ॥ ॥ पु० ॥ कीधो कुल्ल दीवाण हो ॥ १३ ॥ सु० ॥ बांध डोड दरबारनी ॥ पु० ॥ में सोंपी तुज या ज हो ॥ परजा जिम सुखमें रहे ॥ पु० ॥ ते तुमें क रजो काज हो॥ १४ ॥ सु ॥ शीख जलामण इणि परें ॥पु॥ महीयें कीधी चंग दो ॥ हरिबल चाल्यो
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