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( २३७ )
पुर नगी ॥ पु० ॥ सचिवने सोंपी झिंग हो ॥ १५ ॥ सु० ॥ चतुरंगी सेना सज करी ॥ पु० ॥ जाणियें ना इव रंग हो ॥ दलवादल जलपूर ज्युं ॥ ५० ॥ जें च ल्यो घणे यामंग हो ॥ १६ ॥ सु० ॥ वसंत पुरी पट नारीनी ॥ ५० ॥ पूर्वे वसावी जेह हो ॥ ते नगरीयें श्रावीया ॥ पुं० ॥ पामी परजानेह हो ॥ १७ ॥ सु० ॥ दिन केताक तिहां रह्या ॥ ५० ॥ खागल चाल्या शीघ्र हो । विशालापुर संनिधें ॥ पु० ॥ या व्यो हरिबल तिग्र दो ॥ १८ ॥ सु० ॥ गुन लग्ने गु न मुहूरतें ॥ ५० ॥ नगरी में कीध प्रवेश हो ॥ जाली यें हर्षपयोधिमा || पु० ॥ किधो प्रवेश नरेश हो ॥ ॥ १५ ॥ सु० ॥ पुर जन सहु राजी थयां ॥ ५० ॥ नयरों निरखी नाथ हो ॥ सोहवें मली शुन मोती यें || पु० ॥ नृपने वधाव्यो सनाथ हो ॥ २० ॥ सु० ॥ नलें खामंबरें हवें ॥ पु० ॥ पहोतो नृप द रंबार हो ॥ बत्रीश राजकुली मल्या | पु० ॥ मलि या बांद पसार हो ॥ २१ ॥ सु० ॥ जल नलां लावे जेटणां ॥ पु० ॥ नृप पण ते करे अंग हो । सनमा नी मी तेहने || पुं० ॥ देइ शिरपान ते रंग हो || ॥ २२ ॥ ० ॥ इणिपरें लीला राजनी ॥ ५० ॥
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