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________________ (१) रे॥प्री०॥ केश लख लाख मंदिर जन नरिया, के कोडि सखि परवरीया रे ॥ २१॥प्री० ॥ पण ते प्रि य विण न लागे नीका, जिम घृत विण नोजन फी कां रे ॥प्री० ॥ धन्य ते नारीनो अवतार, जस मं दिर रहे जरतार रे ॥ २२॥प्री० ॥ शा अवगुण तु में मुझमें दीवा, विण खुनें वहो थधीवा रे॥जी॥ तुमथी तिरियंच पंखी रूडां,दूरें न रहे स्त्रीथकी सूडा रे॥ २३॥प्री० ॥ चार पहोरनो रह्यो जो अंतर, तो फूरे खग निरंतर रे ॥प्री० ॥ तो केम तुमें निसनेही थावो, निज स्त्री विण संका जावो रे ॥ २४ ॥जी॥ के गुं माहरो मोह उतारी, नौतन कोई नारी संजारी रे॥प्री० ॥ के गुलका मसलं काढी, जान परगवा दूजी लाडी रे ॥ २५ ॥ प्री० ॥ तुम चित्तनी पियु क -ल नवि सूजे, ए तो केवली विण कुण बजे रे॥प्री०॥ तो हवे तुमने वेगला न मूकुं, निज स्वामीनी सेवान चूकुं रे ॥ २६ ॥ प्री० ॥ जो मुझने साथै नवि तेडो, पण ढुं किम मेलिश केडो रे ॥जी॥ कायानी बाया पेरें वलगी, केम रही शकुं तुमथी अलगी रे ॥ २७ ॥त्री० ॥ एणी पेरें नारी प्रेम विलुही, करी विनति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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