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________________ ( ८२ ) पियुने सूधी रे ॥ प्री० ॥ बीजा उल्लासनी आाठमी ढा लें, कहीं लब्धि रंग रसालें रे ॥ प्री० ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे हरिबल कहे नारीने, सांजल तुं गुण गेह ॥ प्राणजीवन मुफ तुं खबे, हुं केम देश बेह ॥ १ ॥ पाल व बांधी ताहरो, डुर्मन केम यवाय ॥ राखुं जो वहे रो तुऊथकी, तो मुऊ प्रभु डहवाय ॥ २ ॥ ते किम हुं करूं सुंदरी, तुकथी दिल बदलाय || देखी पेखी म दिका, जीवति केम गलाय ॥ ३ ॥ पण कोय दैवना योगथी, पूरव नव मेलाप ॥ अचिंतित जो स्त्री मले, तो तस कर माफ ॥ ४॥ तुथी उपर वट थइ, नवि जांगुं तुम प्राण ॥ बेह न दाखुं तुऊ नणी, कगे पश्चिम जाल ॥ ५॥ साधें तुमने तेडतां, नथी पूरव तुं गुद्ध ॥ स्त्री ते पग बंधण य, पंथें हुं कहुं तु ॥ ६ ॥ मत जाणे तुं मन्नमें, प्रीतम देशे बेह ॥ एकज मास ने अंतरे, प्राविश हुं ससनेह ॥ ७ ॥ ते माटे थिर चित्त करी, रहेजो थइ सावधान ॥ दान सुपात्रे पोखजो, धर जो अरिहंत ध्यान ॥ ८ ॥ शीख जलामण इणि पेरें, वसंत सिरीने दीध || लंका गढ जावा नली, हरिबल मुहूरत जी ॥ ए ॥ चैत्र शुदि एकम दिनें, गुन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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