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दो कुमरी, रागनी गांठ त्यां पाडी ॥ ज० ॥ उपनंदें पण अनुमोदी पोतें, बांधी मोहनी वाडी ॥ २४ ॥ ॥ ज० ॥ इणिपरें वयरों राजी करीने, उपनंदने सन मानी ॥ ज० ॥ हरिजट्ट साधें उपनंद गेहें, धाव्यो चढती पांती ॥ २५ ॥ ज० ॥ हरिनह कहे जयदेवने प्रणमी, धन्य धन्य स्वामी तुमने ॥ ज० ॥ तुम पुत्रे मुऊ पुत्री जीवाडी, लेखे यस्या यमनें ॥ २६ ॥ ॥ ज० ॥ इलिपरें कहीने लघुताइ पाई, हरिनह मं दिर आव्यो ॥ ज० ॥ उपनंदनो जस पुरमें वाध्यो, सजनजनमन जाव्यो ॥ २७ ॥ ज० ॥ चोथे नासें अढारमी ढालें, धातायें जेह बनावी ॥ ज० ॥ लब्धि कहे नवि सुजो यागें, ए थइ ते कहुं चावी ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ हरिजट्ट केरी धीयने, कीधो जे उपगार ॥ थयो महिमा उपनंदनो, नद्दिल पुरमें सार ॥ १ ॥ ते वा यक श्रवणें सुणी, सुदेव जूदेव विप्र ॥ उपनंद उपरें परजव्या, ज्युं जले नि दि ॥ २ ॥ जायुं हतुं दो नारीयो, मरशे रोगथी एह ॥ उपनंदें जो सज करी, आपणा वयरी तेह ॥ ३ ॥ एम विचारी दो जणें, यो मनमें रोष ॥ उपनंदने हणवो सही, जो जो
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