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________________ ( २६१ ) गुणनो दोष ॥ ४ ॥ देवी पडशे बाजरी, के तेडवी पडशे घेर ॥ ते जाणी उपनंदसुं दो विप्र राखे वेर ॥ ५ ॥ एहवे एक यावी मल्यो, तपसी विरु वेश ॥ तेहने जइ चरणे नम्या, करी यादेश विशेष ॥ ६ ॥ यासन वासन देश करी, तपसी कस्यो निज हाथ ॥ तव तपसी कहे सेवको, शी वंबो मुऊ याथ ॥ ७ ॥ तव दिज कहे कर जोडीने, दो में नूदेव ष्ट ॥ उपनं दने एह करो, हुवे ज्युं यम तस रुष्ट ॥ ८ ॥ ॥ ढाल उगणीशमी ॥ ॥ गोकुल गामने गोंदरे रे ॥ ए देशी ॥ तव तपसी समी कहे रे, सांगलो दो तुमें थाप ॥ मोरा वाला रे ॥ ए पातक किहां बूटीयें रे, श्यो दीजें प्रभुने जबाप ॥ १ ॥ मो० ॥ इम तपसी कहे विप्रने रे, म करो ए हनी तांत || मो० ॥ पापनी बांहेडी मत रहो रे, जो वो विप्रनी जात ॥ मो० ॥ २ ॥ ३० ॥ महिष गवा मृगने हो रे, हणे सूयर पंखी बाग || मो० ॥ खट दर्शन शास्त्र कह्यो रे, तेह पापनो नावे ताग ॥ मो० ॥ ३ ॥ ३० ॥ एकेक जीव तन उपरें रे, जेती रोमरा जी होय ॥ मो० ॥ वरष सहस तेतां गुणी रे, ए शैव मततो ज्ञेय ॥ मो० ॥ ४ ॥ ३० ॥ होय विपाकें दश गुणुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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