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________________ (२३) लघु नाटकें केवल प्राणी रे ॥ २१ ॥ ॥ हांजी कू मापुत्र कृषि खेडतां, पाम्यो केवलनाण स्वनावें रे ॥ हांजी वलकलचीरी पण इणि परें, पात्र ढुंबतां के वल पावे रे ॥ २२ ॥ ३० ॥ हांजी मरुदेवी माता जे षजनी, गज बेठां केवल पाम्यां रे॥ हांजी इत्या दिक मन शुध्थी, नवो नवनां मुख सवि वाम्यां रें ॥ २३ ॥३०॥ हांजी ते माटे तुमें नूधणी, कह्यु मा नो अमारूं ए साचु रे ॥ हांजी पंच महाव्रत पालतां, घणुं दोहिलु होवे मन काचुं रे ॥२४॥३०॥ हांजी इत्यादिक वचनें करी, कहे वसंतरिसती उजमालो रे॥ हांजी चोथा उल्लासनी ए कही, विशमी लब्धे ढा लो रे ॥ २५॥३०॥ इति ।। ॥दोहा॥ ॥वचन सुणी पट्टराणीनां, बोल्यो हरिबल ताम॥ सुणो नई तुमें जे कही, ते मार्नु अनिराम ॥१॥ पण मन माहरुं शुरू , जिम गंगानुं नीर ॥ तिम में संजम लेहवो, तरवा नवदधि तीर ॥२॥ उत्तर मेह न उनहे, उनहे तो वरसंत ॥ शा पुरुष वयण न उच्चरे,उच्चरे तो ते करंत ॥३॥ एम कही जत्यो तु रत, संजम लेवा सार ॥ संसार कारागृहथकी, निक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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