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(२४) व्यो ते निरधार ॥३॥ तव दो कुमरी चिंतवें, प्रीतम थयो दृढचित्त ॥ अहिकंचूकि परें बंमशे, वरशे सं यम मित्त ॥ ५ ॥ सिवधूनो लालची, थयो आप यो जूनाथ ॥ तो हवे आपण दो जणी, वही प्रीत म साथ ॥ ६ ॥ जिहां काया तिहां बांहडी, वहे ज्यु निशिदिन संग ॥ त्युं दंपति व्रतगेहमें, वहेगुं अवि हड रंग ॥ ७॥ श्म जाणी दो रागिणी, पतिसाथें करि नाव ॥ जवजलधि तरवा ग्रहे, संजम महोटुं नाव ॥ ॥ वली बीजी जे राणीयो, जे नव सिदि जीव ॥ ते पण पतिसाथें थइ, व्रत ग्रहवाने अतीव ॥ ॥ ए॥ हरिबल केरो जे अने, श्रीपति कुन दिवान ॥ ते पण साथें सज थयो, लेहवा पद निर्वाण ॥१०॥ इणिपरें नाविक जीवडा, राणी यादें केय ॥ पंच स यां परिवारगुं, हरिबल संयम लेय ॥११॥ दीदा महोत्सव नत्ति परें, श्रीबल सुबलें कीध ॥ मणि मा णिक सोवन घणां, आशी जनने दीध ॥ १२ ॥ हवे हरिबल मोह नपरें,कोप्यो अतिही पूर ॥ काढयो कूटी मोहने, आत्मइिंगथी दूर ॥ १३॥
॥ ढाल चोवीशमी ॥ ॥ कडखानी देशी ॥ मोह नृप नपरें चढतरी वा
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