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मुनि चार ॥ ६ ॥ पंच महाव्रत उच्चरी, रहेतुं वनह कार ॥ बावीश परिसह फोजनुं, लडवुं थ जूजार ॥ ७१ ॥ ॥ ढाल त्रेवीशमी ॥
|| हरियालो श्रावण यावियो | ए देशी ॥ जीरे वसंत सिरी कहे इणि परें, तुमें सांजलो प्रीतम वातो रे ॥ घरे बेट मन थिर राखीने, पालो नाव चारित्र विख्यातो रे ॥ १ ॥ इम वसंत सिरी कहे कंतने ॥ ए यांक यी ॥ घरे बेगं चालतो धर्म बे, जेहनुं मन बे गुंद चंगा रे ॥ हांजी लोक नखाणो पण कहे, मन शुद्ध कथोटी में गंगा रे ॥ २ ॥ ३० ॥ हांजी एक घरे बेठो तप करे, एक जइ सेवे वनवासो रे ॥ पण कह्यो अ ॥ हो घरे तप करे, हांजी पण न कह्यो जजो वन पूरव जो ॥ ३ ॥ ३० ॥ हांजी पाराशर विश्वामित्र खि रेप करे वनमां जाई रे ॥ हांजी मास मास खंमा लें, रहे वनपत्र सुकां खाई रे ॥ ४ ॥ ३० ॥ ो घडी बड़ी तपस्या ते दो करे, लोही मांस गयां ते जोग रे ॥ हांजी ते सरखा पण स्त्री थकी, चलीया अंति विषयनी पाइ रे ॥ ५ ॥ ३० ॥ हांजी खटरस जोजन जे करे, तेहनुं मन किम होवे शुद्धो रे ॥ हांजी मन वश राखे जे घरे रही, तेहनी कहे जिन नली
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