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________________ (२६) ॥ मा० ॥ में ते ए गुं कीचूं, निज मंदिर मूकी दीg रे ॥ मा० ॥ २१ ॥ लवलेश पोंक न खाधो, निजकमैं हाथे दाधो रे ॥ मा॥ जे कहे लोक उखाणो, ते में तो नजरें पिडाण्यो रे ॥ मा० ॥२॥ फोगट सुंदरी सा थ, आवी खोई घरनी आथ रे॥ मा० ॥ ए फुःख के हने दा, एहवो नही कोइना रे॥ मा०॥२३ ॥ सुख दुःख जे लख्यां पाने, ते नोगवे जीव एक ताने रे ॥ मा० ॥ धीवर मनमें विमासे, रोइ राज न पामे उन्नासें रे ॥ मा० ॥ २४ ॥ एतो सुंदरी मोहोटी, कि म रांक घरे रहे त्रोटी रे ॥ मा ॥ रूपें रंजसमान, किम सुंदरी दे मुफ मान रे ॥ मा॥ २५ ॥ धिग मुफ जीवित एह,धीवर पणुंलयुं में जेह रे ॥मागमा हरु कुरूप देखी, कुमरीयें नाख्यो उवेखी रे॥मा॥ ॥२६॥ धिग धिग जाति अकामी, मुफ देखी मूर्ना पामी रे ॥ मा० ॥ धीवर फुःखीयो अपार, वहे नय णें आंसु धार रे ॥ मा० ॥ २७॥ किहां गयो सागर देव, मुफ काम पडे इहां हेव रे॥मा ॥ सुंदरी जे मूरवाणी, करे जीवित ते सुख खाणी रे ॥ मा० ॥ ॥ ॥ जलनिधि सुर तव आवे, धीवरने हर्ष उपा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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