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________________ (५५) त्रिजगमें कंटकेश्वरी,नाम धरावतो जेह॥ हे रा०॥ चो थी नरकें ते गयो, परस्त्रीनां फल एह ॥ हे रा०॥ ॥ ६ ॥ धि०॥ लंका परलंका करी, निजनारीने लेय ॥हे रा० ॥ निज नगरीयें रघुपति वव्यो, जितना में का देय ॥ हे रा० ॥ ७॥ धि० ॥ बाणुं लख मालव धणी, जे थयो राजा मुंज ॥ हे रा० ॥ ते पण दासी मृणालथी, लुब्ध्यो कामीनि पुंज ॥ हे रा० ॥ ७ ॥ धि ॥ ते दासीना संगथी, घर घर मागी नीख ॥ हे रा० ॥ अंते यूलि रोपण थयो, कामथी लयो ए शीख ॥ हे रा ॥ ए॥ धि०॥ लुब्ध्योपदी ऊपरें, कीचकें कीयो चूक ॥ हे रा ॥ घालियो देवल कुन मां, नीमें कीधो नूक ॥ हे राण॥ १० ॥ धि० ॥ सर सति नामें साधवी, कालिकसूरिनी बेन ॥ हे रा० ॥ गर्धनिल नृपें तस अपहरी, कीg ए कामी चेन ॥ हे रा० ॥११॥ धि० ॥ कालिकसूरिये ततखिणे, मे ली प्रबल खंधार ॥ हे रा॥ गर्धनिल नृप शिर बेदी युं, वाली निज बहेन सार ॥ हे रा० ॥१२॥ धि ॥ इत्यादिक कामीजना, पाम्या कुःख अपार ॥हे रा० ॥ परस्त्रीगमन कस्वाथकी, पडिया नरक मकार ॥ हे रा०॥ १३ ॥ धि० ॥ कामिनी जे संसारमां, नां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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