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________________ ( १२२ ) पजणुं त्रीजो उल्लास ॥ ५ ॥ उत्तमना गुण गावतां, होवे उत्तम थाप ॥ खाइनी खेजें नावतां, जाये मल संताप ॥ ६ ॥ धर्मना रसिया जे हशे, ते सुशे एक मन्न ॥ धर्म कथा गुण लेयने, मानशे ते दिन धन्न ॥ ७ ॥ नारे करमी बापडा, गुं जाणे ते धर्म ॥ श्रवगुण जे निंदा करे, साहमुं बांधे कर्म ॥ ८ ॥ ते माटे नावुक तुमें, अवगुण मत व्यो कोय ॥ कीजें व्यवसाय धर्म नो, तेहमें खोट न होय ॥ ए ॥ इम जाली तुमें सांन लो, हरिबल केरुं चरित्र ॥ धर्मकथा सुणतां थकां, प्रतम होवे पवित्र ॥१०॥ दवे सुणजो नविका तमें, हरिबल के ख्यात ॥ लंका ज३ खाव्या पबी, शीशी निपजी वात ॥ ११ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ यारा मोहोला ऊपर मेह, फबूके वीजली ॥ हो लाल ऊबू के वी० ॥ ए देशी ॥ हवे हरिबल पहेरे वेश ते, जाणी प्रेनो हो लाल के ॥ जाणी प्रेनो ॥ दूरथी श्रावतो जाणे, नरेश ते लेकनो हो० ॥ नरे० ॥ एहवो वेश ब पाय, प्रजातें निकल्यो हो० ॥ प्रना० ॥ लोकनी दृष्टें जगाय, ते हरिबल टकल्यो हो| ते० ॥ १ ॥ चडुटे वतां जुहार, जुहार ते सदु करे हो० ॥ जु० ॥ ह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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