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________________ ( १२३ ) D रिबलने मनोहार, करे सदु जली परें हो० ॥ क० ॥ इम करतां दरबार, ते मांहे यावियो होते ० ॥ जिहां बेटी परखद त्यांहे, बांहे जावियो हो० ॥ ० ॥२॥ नृपजन यादि परज, ते कठी सढुं मली हो० ॥ ते ॥ एक नृप विना बीजी परज, ते मनमें यह रली हो० ॥ ॥ ते० ॥ पूढे मांहोमांहे, ते कुशलनी वारता हो० ॥ ते ॥ पाठो उत्तर हरिबल, दे दिल धारता हो ० ॥ दे० ॥ ३ ॥ प्रगटी होलीनी जाल ते, नृपना मन्नमें हो० ॥ नृ० ॥ लागी अंगो अंग, अंगीठी तन्नमें हो० ॥ खं० ॥ वलि मंत्री कालसेननुं, कालजुं नीकल्युं हो ० ॥ का ० ॥ श्याम वदन थयुं तास, ज्युं श्याम जाजन तनुं हो ० ॥ ज्युं ० ॥ ४ ॥ जाणे जहाज निमऊ, ययुं दरिया वच्चै हो० ॥ थ० ॥ तिम हरिबलने देखि, दो नृप मंत्री लचे हो० ॥ दो० ॥ कारीमो रंग देखाडी, कहे मुखथी घणुं हो० ॥ कहे ० ॥ हरिबल दे चादर, दे नृप बेसणं हो॥दे ॥ ५॥ या गत स्वागत कीध, घणी हरिबल तणी हो० ॥ घ० पूढे सोज समाचार, नृप हरिबल जणी हो॥ नृ० ॥ कहो हरिबल तुमें लंका, गढ नणि किम गया ॥ हो ० ॥ गणराय बिभीषण केरा, समाचार किम थया हो। स||६|| तव हरिबल ते खडग, करे जेइ नेट ॥ हो । ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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