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॥ सां० ॥ एतो तस शिष्य कुशल विजय गणि, गणि कमल विजय तस नात ॥सा॥ एतो तस शिष्य ल मी विजय कवि, एतो ज्ञान क्रियामें सरात ॥ सा० ॥ श्शासां० ॥ एतो तस शिष्य केशर अमर दो, एतो जगमां कर्म फिपंत ॥ सा० ॥ एतो सूरज चंड तणी परें, दोय बंधव तेज दीपंत ॥ सा ॥ २४॥ सां॥ एतो तस पद पंकज किंकरु, एतो लब्धिविजय न जमाल ॥सा॥ शोले ढालें पूरो कस्यो, एतो बीजो न लास रसाल ॥सा॥२५॥सां॥ इति श्रीजीवदयापरे हरिबलमबीरासे लंकागमनागमनसंबंधः संपूर्णः॥॥
॥दोहा॥ ॥शांति सुधामयमें प्रनु, मगन रहे निशिदीस ॥ केवलज्ञान प्रकाशथी, देखे विश्व जगीश ॥ १॥ ज्यो तिवधूना संगमें, निशिदिन रह्यो लपटाय ॥ तस पद पंकज ढुं नमुं, वामानंदनराय ॥ २ ॥ वचनामृत रस वरसती, कविमन महितल जेह ॥ नवपन्नव क विने सदा, करती माता तेह ॥३॥ चरण कमल नमुं तेहनां, बाला त्रिपुरा सोय ॥ गुण गातां ध्यातां सदा, मुफ मन वंडित होय ॥४॥ कोविद केशर अमरना, खरण कमल नमितास ॥ तस सान्निध हरिबत तणो,
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