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॥ सा० ॥ एतो लंकागढथीलावियो, एतो परणीम होटी सलऊ ॥ सा ॥ १५ ॥ सां० ॥ तव वसंतसि री हरखित थर, जलें यावी माहारी बेहेन ॥सा॥ एतो वारे वासे पामगुं, गुण महोटो थयो सुख चेन ॥सा॥१६॥सांग॥ हवे वसंतसिरी सहेलीगुं, गइ वा डीये तेडवा तेह ॥सा॥ कुसुमसिरी निज बेहेनने,घणे हेतें लावी गेह ॥सा॥१७॥सां०॥ एतो वसंतसिरी ने पाय पडी, दीधो कुसुमसिरीयें लाग ॥ सा ।। नखने मांस ज्युं प्रीतडी, तिम बिदुने थयो एक राग ॥सा॥ १७ ॥ सां०॥ एतो दोगुंङक सुरनी परें, दो नारीशुं जोगवे नोग ॥सा॥ एतो हरिबल जीव दया थकी, सुख पाम्यो पुण्य संयोग ॥ सा॥१७॥सां॥ एतो इणिपरें जे दया पालशे,एतो सांजली गुरु उपदेश ॥सा॥ एतो हरिबलनी परेंपामशे,एतो जवोचव सुख विशेष ॥ सा० ॥ २० ॥ सांग ॥ एतो सोहम शुरु परंपरा, तस गादीये हीर सूरिंद ॥ सा ॥ एतो सा ह अकब्बर बूजवी, एतो मेलव्यो सुकत हुंद ॥सा॥ ॥ २१॥सां॥ एतो तस शिष्य पंमित सोहता, धर्म विजय कविराय ॥ सा ॥ एतो तस शिष्य धनहर्ष जग जयो, एतो पंमित मांहे सराय ॥ सा ॥२॥
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