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________________ ( १५० ) कहे गाजते ॥ २६ ॥ न० ॥ खमो एक स्वामी ल गार, वात विचारीने कीजियें ॥ न० ॥ पूबी जम प डिहार, विल पूढे पगलुं न दीजीयें ॥२॥न० ॥ तव पूबे महिपाल, यम पडिहारने तक नहीं ॥० ॥ चोथा उल्लासनी ढाल, पांचमी लब्धिविजय कही ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ कर जोडी परिहारने, पूबे तव महिपाल ॥ जो तुम हुकम हुवे खरो, तो वरुं अम्मीजान ॥ १ ॥ तव कहे सुर परिहार ते, सांजलो कहुं नृप तुम्म ॥ दुष्ट कुबुद्धि घटारडो, बे यम राणो अम्म ॥२॥ तुम नगरीनां मानवी, जोवा थयां सहु सऊ ॥ पण यम आागल नवि रहे, तुमची महोटी लऊ ॥३ ॥ तेमाटे तुमें मोकलो, जे तुम वल्लन होय ॥ यमने पूढी उ तावलो, आवे स्थानक जोय ॥ ४ ॥ त्यार पढें पें सहु, जइ यम नृप प्रणमेय | तेहना हुकमथी उतस्या, जिहां कतारो देय ॥ ५ ॥ वि पूढे जो जाइयें, तो खीजे यमराय || जीवथि यम जूदा करे, तुम सहु साथने धाय ॥ ६ ॥ इम नृपने ते सुर कहे, यमनुं ए बे शूल ॥ काज विचारी कीजियें, तो वधे यापं मूल ॥ ७ ॥ ते वाणी नृप सांजली, चमक्यो चित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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