________________ ( ए ) विजयधर्म सूरीशो // तस गणधरना राजमां रसि यो, गायो महि विशेषो रे // 24 // सु॥ वाव्य बंदर श्रीअजित प्रसादें, रही सीमाणा वासें रे॥रा या श्रीगजसिंहने राज्ये,रास रच्यो में नन्नासें रे॥२५॥ // सु०॥ हरिबलना गुण सुणतां पामे, जीवी सिम समाणी रे // ढाल पचवीशमी चोथे उल्लासें, लब्धि कहे गुण खाणी रे // 26 // सु० // ढाल उगणसाउ सातशे दोहा, हरिबल चरित्रथीनांख्या रे॥ साडात्रण सहस्त्र श्लोक एकावन, ग्रंथाग्रंथ ए दाख्या रे // // 27 // सु०॥ ज्ञाता जुगता दाता सारु, संबंध र च्यो में वारु रे // हलुआकर्मी जे हशे साचा, मान शे सघली ए वाचा रे // 27 ॥सु॥ चनविह संघने मंगल होजो, दिन दिन लबिमें जलजो रे // हरिबल नी परें संपद लेहेजो, सब्धिनी वाचा फलजो रे॥ // 25 // सु०॥ इतिश्री हरिबल चरित्रे जीवदयापरे चतुर्थ ननासः समाप्तः // 4 // // इति जीवदयापरे हरिबलरासः समाप्तः॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org