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( २२८ )
रे ॥ मो० ॥ दंपति थयां उजमाल ॥ चोथा उल्लासनी प्रेम प्रकाशनी पेखिने रे । मो० ॥ कहि लब्धियें अग्यारमी ढाल ॥ २९ ॥ का० ॥ इति ॥ ॥ दोहा ॥
॥ नव जोयण लांबी वसी, पहोली योजन बा र ॥ जाणुं लंकानी बनडी, वसी इहां वनद मजा र ॥ १ ॥ सजल सरोवर जल नखां, वाडी तिम लह कंत || जाएं सुरवाडी इहां, प्रगट थइ महकंत ॥ ॥ २ ॥ पटराणीना नामनी, वासी नगरी सार ॥ व संतपुरी नामें जली, चावी यइ संसार ॥ ३ ॥ इि परें नगरी वासिने, हरिबल राजी कीध ॥ पहोतो ते निज थानकें, जलधी नाथ प्रसि६ ॥ ४ ॥ वसंत सिरीना सचिवने, सोंपी नगरी तास ॥ केताई दिन तिहां रही, आागल चाव्या उल्लास ॥ ५ ॥ दल वाद ल हरिबल तणुं, चाले ज्युं जलपूर | धरणी तलथी सलसल्यो, शेषनाग जयनर ॥ ६ ॥ के शुं लेशें लंकने, के सुं जेशे स्वर्ग ॥ के गुं जेशे जगतने, इम जाणे ज नवर्ग ॥ ७ ॥ इणिपरें हरिबल राजवी, चाल्यो प्रति ही चंप || सीमाडाना जे धणी, यावी नमिया नूप ॥ ८ ॥ इषि परें प्राण मनावतो, आव्यो चारज दे
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