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( ३२७ )
सेना उबाहि ॥ २२ ॥ का० ॥ प्यारि पयंपे पियुने जंपे देतनी रे ॥ मो० ॥ वाणीयें वीनवे नूप ॥ इंद्रपुरी सम नाम रहे तिम वेतनी रे ॥ मो० ॥ नगरी व सावो चूंप ॥ २३ ॥ का० ॥ श्रीजिनमंदिर यतिही सुंदर चोंपशुं रे || मो० ॥ करो इहां तीरथ ठाम ॥ जे मुंऊ परणी ते करो करणी रूपचं रे ॥ मो० ॥ जिम रहे जगमें नाम ॥ २४ ॥ का० ॥ तव ते मी प्यारी सुली वयणथी रे ॥ मो० ॥ समस्यो त्यां सा गर देव ॥ गुणनो रागी पुष्यविनागी सयाथी रे ॥ ॥ मो० ॥ श्राव्यो सुर ततखेव ॥ २५ ॥ का० ॥ सुर कहे शाने तेडो माने ते कहो रे । मो० ॥ जे होय मननी दूब ॥ तव कहे हरिबल दाखो सुरबल मनें वहो रे । मो० ॥ नगरी वसावो खूब ॥ २६ ॥ का० ॥ तव तिहां नाकी बाकि न राखी पलकमें रें ॥ मो० ॥ वासी त्यां नगरी विस्तार | गढ मढ मंदिर पोलगुं सुंदर हलकमें रे ॥ मो० ॥ रचना कीध अपार ॥ ॥ २७ ॥ का० ॥ श्रीमुनि सुव्रत त्रीजग उद्धृत सो हंती रे ॥ मो० ॥ बिंब ठव्युं करि चैत । दंपति दोनी मूरति कीनी मोहती रे ॥ मो० ॥ पूर्वे जे लघुं देवत्त ॥ १८ ॥ का० ॥ रान वेलावल पिंग ने देवल देखिने
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