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(१२७) ॥ हो॥पू०॥ विवानीवच्चो, घर्घरणो जगाडियो दो ॥१०॥राज्यनुं काम सधावा में, तव बुद्धिकरी हो। में॥मामो कहिने बोलाव्यो, राखसने म्हें फरी हो॥ रा॥१॥आवो मामा जुहार,नाणेज तुमने करे हो ॥ ना० ॥ द्यो अनेदान ते मामा, नाणेजने नलि परें हो॥नास्वामी तुम्ह प्रसादथी,बुदिएकली हो० ॥बु॥राजी थयो तव राखस,वाणी सुणी नली हो ॥वा ॥२२॥ पूछे राखस जाणेज, तुं हां किहां थ की हो० ॥ तु०॥ कम तु आव्यो जलधिमें, ते मुज कहे बकी हो ॥ ते॥ तव हरिबल कहे मामा, मुफ लंका तणो हो॥ मु० ॥ दाखवो मारग माह रे, काम तिहां घणो हो ॥ का ॥ २३ ॥ जावं में नृप कारज, शीघ्र उतावलो हो ॥ शी० ॥ तव रा खस कहे जाणेज, दीसे तुं बावलो हो० ॥ दी० ॥ मीयां वादे चावे, चणा तुंए नई हो ॥चा०॥ श्यो तुम आशरो नाणेज, लंकामें जq हो० ॥ सं० ॥२४॥ चूसी ले तुक राखस, धोले दी बतां दो० ॥ धो० ॥ किम तुज पूर जाणेज,लंका गढ जतां हो ॥सं॥ जेहथी निपजे काम,ते तेह करी शके हो ते॥ बांध्यो गझो खाइ, बुधां त्यां बदु बके हो०
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