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________________ ( ११० ) ॥० ॥ २५ ॥ चमक्यो चित्तमें स्वामि चखाणो सांजली हो० ॥ ० ॥ घर सरखि नहि यात्र, ए वात में श्र टकली हो० ॥ ए० ॥ तव में पूब्धुं स्वामी, राखसने ते वलि हो० ॥ रा० ॥ मुऊने बतावो मामा, लंका कूंची गली हो० ॥ लं० ॥ २६ ॥ किलिविधें मामा जवाये, लंका गढ़ हुं लहुं हो० ॥ लं० ॥ तव राखस कहे जाणेज, सांजलो हुं कहुं हो० ॥ सां० ॥ त्रीजा उल्लासनी ढाल, ए पहेली उच्चरी हो० ॥ ए० ॥ लब्धि कहे नवि सांगतो, यागें नजम धरी हो० ॥ श्रा० ॥ २७ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे राखस कहे महिने, सांजल तुं जाणेज || जो जावुं तुऊ लंकमें, तो करि कहुं ते हेज ॥ १ ॥ अगनी तुज काया दही, कर तुं रहा ह ॥ ते रक्षा पडी लेइने, सोपुं लंका तब ॥ २ ॥ इषि विधि तुं लंका लहे, बीजी विधि नवि कांय ॥ जो तुम बसें लंका गयो, तो तुम राक्षस खाय ॥ ३ ॥ राक्षस वय एते सांगली, में धाखुं मनमांहि ॥ जीवित जो वाहालुं करूं, तो पण न रहे कांहि ॥ ४ ॥ रमणी राज्य ने क द्धि ते, तन धन जे वलि प्राण ॥ एतां करे अलखाम यां, वाक्यवबलना जाए ॥ ५ ॥ ते जाणी तुम कार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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