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________________ (१७३) ॥०॥ पुण्य प्रनावथी अतिहे विशाला, होशे मंग जमाला रे ॥ २३॥०॥ गुरु परंपर सोहम स्वा मा, दुधा मुफ अंतरजामी रे ॥ज ॥ तस पाटें गु रुहीर सूरिंदा, उपजे तेज दिणंदा रे ॥२॥5॥ तस शिष्य धर्मविजय धर्मधोरी, निशिदिन जरे पुण्य 3री रे ॥ ॥ तस शिष्य धनहर्ष झानना दरि या, कवि जनमें अनुसरिया रे ॥२५॥न लस शिष्य कुशतविजय कविराया, जैनमारग दीपाया रेन ॥ तस लघु बंधव आज्ञाकारी, कमलविज य जयकारी रे ॥ २६ ॥ ज०॥ तस शिष्य सक्सी विजय गुणगेही, श्रुत चारित्रना नेही रे॥जा तस शिष्य केशर अमर दो नाता, पंमित जनने विख्याता रे॥२७॥०॥ तस पद किंकर लब्धि कहावे, ह रिवलना गुण गावे रे ॥०॥ उत्तम नरना ते गुण गातां. बांधियें पुस्यना खातां रे ॥॥जगात्रीजो उनास कस्यो ए पूरो, नव ढालें ते सनूरो रे ॥जा सम्धे कही ए वारता मीठी, जेहवी शास्त्रमा दीती रे। एन० ॥ इति श्री जीवदयापरे हरिबलच रित्रे पुण्याधिकारे तृतीय उल्लासः संपूर्णः ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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