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________________ (१७) क॥श्म जाणी प्राणी तुमें, राखजो पूरो सत्य वि वेक ॥ २० ॥ सांग ॥ इणि परें हरिबलें नारीने, सत्य उपर देई दृष्टांत ॥ कामिनी दो हरखित करी, दंपती मांदोमां हरखात ॥ २१॥ सां० ॥ सुखें समाधे दंप ती रहे, निज मंदिर मांहे उहाह ॥ दो गुंडक सुरनी परें, पंच विषय सुख जोगवे त्यांह ॥ २२ ॥सांग ॥ निज मंदिर रहेतां थकां, जव थयो पूरण एक मास ॥ तव हरिबल चित्त चिंतवे, निकलुं किंगमें मनने उ लास ॥ २३ ॥ सांग ॥ नृपने ते जडी शीखडी, फरी पानी सर सांधे न सोय ॥ पण मंत्री कालसेन ते, एवं कीधी ते न करे कोय ॥ २५ ॥ सांग ॥ जो जग दीशनुं चायुं ,तो करूं कालकंटकने दूर ॥ बाली जा ली ते बारने, लेइ जना ते वहेते पूर ॥२५॥सां॥ विण अपराधे मो परें,अहनिशि करतो खेद अथाह ॥ नृपना कान नंनेरीने, मुजने मूक्यो यमने ठगह ॥ ॥ २६ ॥ सां० ॥ तो हुँ खरो ए मंत्रीने, नृपने हाथे कराईं बार ॥ शल्य काढुं याखा जमतनुं, मो मननो पण काढुं खार ॥ २७ ॥ सांग ॥ हणतागुं हणीय सही, तेहनु पाप न गणीये काय ॥ जेहवी देवी ते हवी पातरी, एम उखाणो जगा कहाय ॥ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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