________________
(१ए) ॥सां०॥ ए मुझयें कामिनी, कालने बाल्यानुं जे का म ॥ काल नूंमो ने संसारमां, कालथी बिगडे केदिनां ठाम ॥२ए ॥ सां० ॥ श्म जाणी हरिबल तिहां, स मखो सागरसुर उजमाल ॥लब्धि कहे गुन सत्यनी, चोथा उनासनी त्रीजी ढाल ॥ ३० ॥ सां० ॥ इति॥
॥दोहा॥ ॥ हवे हरिबल हरखें करी, समस्यो सागर देव ॥ ते पण ततखिण आवियो, कहो वह किम समरेव ॥ ॥१॥ तव हरिबन कर जोडिने, सुरने कहे सोहाह॥ कालसेन कम जातिने, यो तुमें अग्निमांद ॥२॥ शल्य काढो प्रनु माहरु, जिम लढुं सुख नरपूर ॥ वि ए खूने मुझने नडे, तेहने टालो दूर ॥३॥ हरिब लनी वाणी सुणी, थयो तव सुर परसन्न ॥ हरिबल केरी कांतिमें, संक्रम्यो सुर तस तन्न ॥४॥ दिव्यां बर पहेरी करी, पहेरी नूषण चंग ॥ दिव्य रूप हरि बल तणुं, की सुरसम अंग ॥ ५॥ हरिबल पासें सुर करे, वैक्रिय बीजुं रूप ॥ नन मारगथकी उतरी, श्रावि दो बेटे नूप ॥६॥ चमत्कार चित्तमें सही, हरखित परखद सार॥ हरिबलने देखी तिहां,मलिया बांह पसार ॥७॥ नृप मंत्रीने प्रगटीयुं, महोटुं कुःख
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org