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________________ (१३३) न्य करणी दरिबलनी हो गयगमणि लंका जातडी, ए तो परणी आणी सोय ॥ ए० ॥ २०॥ नृप पण थ यो मन राजी हो गुज देजाजी वधामणी, ए तो ह रिबल कीध प्रसन्न ॥ घणे आम्बरें करीने हो हरिब लने काध पहेरामणी, ए तो मूक्यो निज आसन्न । ए७ ॥ १ ॥ गोखें बेठी देखे हो पियु श्रावतो पेखें रंगगु, थनारी दो उल्लास ॥ दंपतीनी दो दृष्टि हो थइ सुधावृष्टि चंगा, ए तो पहोती सघली आश ॥ ए॥ ॥ २२ ॥ हवे हरिबल मतवालो होए तो दो गोरीनो नाहलो, ए तो सुख विलसे संसार ॥ प्रेम सुधारस प्यालो हो एतो पियुने वालो वाहलो, ए तो सफल करे अवतार ॥ए० ॥ २३॥ जुवो नविया प्राणी हो मन जाणी जीव ऊगारीयो, एक जलचर जीव जो मज ॥ तो तस पुण्य प्रजावें हो गुन जावें जनम सुधारि यो,लह्यो मही लखि सुलह ॥ए ॥२४॥ ढुं बलिहा रीतेहने हो जे जेहने लेश्या धर्मनी, तस होवे सुर नर दास ॥ त्रिजा नन्नासनी पूरी हो बीजी ढाल स नूरी मर्मनी, ए तो पनणी लब्धि सुवास ए॥२५॥ ॥दोहा॥ . ॥ हवे नृपें दरिबल नारीनी, उविधा मूकी दूर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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