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(१३) ॥ जाग्यो जव मंदिर धणी, लाज्यो चोर मजूर ॥१॥ तिम नृप समजी मन्नमें, हरिबलयु करे प्यार ॥ हरि बल पण सेवा करे, नृपनी ते दरबार ॥॥ हरिब लनी थइ वातडी, नगरि विशालामऊ ॥ लंका लाडी लावियो, परणी लऊ सुलऊ ॥३॥ ते वातो श्रव एवं सुणी, कालसेन परधान ॥ परजले मनमें पापी यो, हरिबल सुणि जस वाण ॥४॥ दिनकर देखी चूक ज्यु, रजनीपति ज्युं चोर ॥ जलधर देखि जवास ज्यु, त्यु बले सचिव ते जोर ॥ ५॥ पण गुं करे पज्यो एकलो, जोर न चाले कोय ॥ जेहना दीहा पाधरा, तस अरि अंधज होय ॥ ६ ॥ कर क्रम धोई वांसे थ यो, हरिबलने ते उष्ट ॥ बल ताके बलवा नणी, कालसेन नञ्चिष्ट ॥ ७ ॥ एक दिन बेगे मालीये, मद नवेग ते राय ॥ कालसेन तिहां आवियो, बेगे प्रण मी पाय ॥ ॥ कानें लाग्यो चाडियो, कालसेन की राड ॥ हरिबलने कुःख दाखवा, नृपने पाले राड ॥॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ण सरोवरीयांरी पाल,आंबा दोय रानला ॥ल लना ॥ ए देशी ॥ हवे हरिबलनां वयण, वखाण ते नृप करे ॥ लम् ॥ खागी त्यागी निकलंक के, शूर सु
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