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________________ (१३५) जट सरे ॥ ल० ॥ जो परधान ते एकलो, लंका गढ गयो || ल० ॥ माहरूं काज सुधारवा, बली नस्म थ यो ॥ ज० ॥ १ ॥ काढ्यो आपणे दो जणें, मलीने स्त्रीवती ॥ ज० ॥ टाढे पाणी यें वेगली, खस काढी ह ती ॥ ज०॥ पण ते साहामुं लाडी, लंका लेइने ॥०॥ श्राव्यो यपणे मंदिर, मंका देने ॥ लणाशा तो में जाएयो ए पूरण, नाग्य बली घणो ॥ ल० ॥ जामा ता यइ याव्यो ए, लंका गढतणो ॥ ल० ॥ नाव्यो सहनाणी खड्गनी, नृपचं मत करी ॥ ल० ॥ लंका पतिनी माहरी, दो राखी सरनरी ॥ ल० ॥ ३ ॥ बुद्धि कल परपंच ए, में दीठो सही ॥ ल० ॥ मद नवेगें मंत्रि धागल, वात ए सवि कही ॥ ज० ॥ काल सेनने पगथी, मांगी माथा लगें ॥ ल० ॥ प्रगटी जा ल ते सांजली, जागी अंगो अंगें ॥ ल० ॥ ४ ॥ बोल्यो मंत्री ताम, कहे रोशें बली ॥ ल० ॥ नलि तुम अ कल जे नरपति, हरिबलनी कली ॥ ल० ॥ गुं तुमें जाणो स्वामी, ए धूरतनी कला || ल० ॥ मानो स घलुं धोलुं ते, दूध करी जला ॥ ज० ॥ ५ ॥ मारें मिंग असंबंधने, अणघडीयां वली ॥ ज० ॥ गजनुं कलिंग तेमांहे, गज तेरनी कली ॥ ल० ॥ अंधे दी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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