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________________ ( १३६ ) तो चंद, यमासनी रातडी ॥ ल० ॥ तिम हरिबल नी ए मानजो, नृप तुम वातडी ॥ ल० ॥ ६ ॥ शुं जाली प्रभु वयण, वखाण करो तुमें ॥ ज० ॥ ए दं जीनां सयल, चरित्र नहुं में ॥ ज० ॥ जे परदेशी लोक ते, दीसे एहवा ॥ ल० ॥ नाटक चेटक जाणे, वादीगर जेहवा ॥ ल० ॥ ७ ॥ कूड कपट परपंच, क कला केलवे ॥ ल० ॥ कल्पित वात करी, कडीयें कडी मेलवे ॥ ० ॥ परगामें परदेशी, फरे थइ बेल सा ॥ ज० ॥ मोडा मोडी करे घरणा, धोबी बेलसा ॥ ॥ ० ॥ ॥ बेसी परजमें वातो, करें महोटी करी ॥ ॥ ल० ॥ मिंगे मिंग चलावे ते, लोक जाणे खरी ॥ ॥ ज० ॥ साची जूठी करे ते, मुखें न लगाडीयें ॥ ॥ ज० ॥ श्वान बोलाव्युं चाटे ते, वदन बिगाड़ीयें ॥ ॥ ल० ॥ ए ॥ ते माटे तुमें स्वामि, सही करी मान जो ॥ ज० ॥ कपटीमां शिरदार ए, हरिबल जाणजो ॥ ज० ॥ किहां लंका किहां लंक, पतिनी पुत्रिका ॥ ॥॥ श्रणमलती ए वात, घडी एणें बुत्रिका ॥लं ॥ ॥१०॥ ए तो कोक धूर्त, पणे करी वातडी ॥ ॥ परस्यो नारी ए उत्तम, मध्यम जातडी ॥ ल० ॥ ना म लिये निज थाप, वधारवा खणघडी ॥ ० ॥ 4 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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