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________________ ( ११६ ) ॥ सु०॥ जो कदि नाव्यो कगते रे ॥ सु० ॥ तो ज‍ गि रि ऊंपाय || सु० ॥ सु० ॥ पेट कटारी खाइ मरुं रे ॥ ॥ सु० ॥ के मरूं सही विष खाय ॥ सु० ॥ २३ ॥ ॥ सु० ॥ कंत विना गुं जीववुं रे ॥ सु० ॥ कंत विना किगुं हेज || सु० ॥ ० ॥ कंत विना शुं मालं रे ॥ ॥ सु० ॥ कंत विना शी सेज ॥ सु० ॥ २४ ॥ सु० ॥ दुःख नर बाती फाटती रे ॥० ॥ रही नथी शकती गेह ॥ ० ॥ सु० ॥ विरहानलनी बाफमां रे ॥ सु०॥ दाजी रही बुं तेह ॥ सु० ॥ २५ ॥ सु० ॥ विरहिणी एम विलपे घणुं रे ॥ सु० ॥ वसंतसिरी ससनेह ॥ ॥ सु० ॥ सु० ॥ नयरों प्रांसु रेडती रे ॥ सु० ॥ जा ऐ ज्युं नाव मेह ॥ सु० ॥ २६ ॥ सु० ॥ वसंत सि री एम पाठवे रे || सु० ॥ झुकने संदेशा जिवार ॥ ॥ सु० ॥ सु० ॥ नारीनुं दुःख सांजली रे ॥ सु० ॥ बोल्यो मत्री तिवार ॥ सु० ॥ २७ ॥ सु० ॥ खोलो कमाड सहेलीयां रे ॥ सु० ॥ मूकी मननी राड ॥ ॥ सु० ॥ सु० ॥ लखियो पति या वियो रे । सु० ॥ हर्षे उघाड्यां कमाड ॥ सु० ॥ २८ ॥ सु० ॥ निजप तिनुं मुख देखतां रे ॥ सु० ॥ कामिनि हर्ष नराय ॥ ॥ ० ॥ ० ॥ हर्ष विनोद जे उपनो रे ॥ सु० ॥ पु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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