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॥ सु०॥ नावे न अन्न ने पान ॥ सु० ॥ सु० ॥ नाह विना घेली नगुं रे ॥ सु० ॥ कहीयें केतु सया ॥ ॥ सु० ॥ १६ ॥ सु० ॥ पूरव पापना योगथी रे ॥ ॥ सु० ॥ पामी स्त्री जमवार ॥ सु० ॥ सु० ॥ नरजो बन पियु घर नही रे ॥ सु० ॥ तस एलें गयो अव तार ॥ सु० ॥ १७ ॥ सु० ॥ ए मंदिर ए मालियां रे ॥ सु० ॥ पियु विना शून्य आगार ॥ सु० ॥ सु० ॥ रस कस खारां फेरशां रे ॥ सु० ॥ लागे ते चित्त मजार ॥ सु० ॥ १८ ॥ सु०॥ यौवन करवत धार ज्युं रे ॥ सु० ॥ विरहिणी नारीने रोष ॥ सु० ॥ सु० ॥ नादविदूणी कामिनी रे ॥ सु० ॥ पग पग पामे ते दोष ॥ ० ॥ १९ ॥ सु० ॥ कालजे कउं मेली गयो रे ॥ सु० ॥ निशिदिन रही ते धुखाय ॥ सु० ॥ सु० ॥ नेह सुधारस सिंचिने रे । सु० ॥ उलवे पियु घर या य ॥ सु० ॥ २० ॥ सु० ॥ ते दिन क्यारें देख रे || ॥ सु० ॥ करस्यां मननी रे वात ॥ सु०॥ सु०॥ प्राण जीवन मुंज देखीने रे ॥ सु०॥ कीजें शीतल गात्र ॥ ॥ सु०॥ २१ ॥ सु०॥ दिनकर पहेलां कगते रे ॥ सु०॥ जो प्रीतम घरे याय ॥ सु० ॥ सु० ॥ तो माणसनी उनमें रे ॥ सु० ॥ जीववुं ते जुगताय ॥ सु ॥ २२ ॥
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